मध्य पूर्व में तनाव बढ़ता जा रहा है, और हाल ही में इज़राइल ने लेबनान में कई आतंकी ठिकानों पर जोरदार हमला किया है। यह हमला तब हुआ जब लेबनान से इज़राइल पर रॉकेट दागे गए थे। इस हमले में कई आतंकियों के मारे जाने की खबर है। इस घटना ने पहले से ही अस्थिर क्षेत्र में एक और संघर्ष की स्थिति पैदा कर दी है।
हमले की पृष्ठभूमि
इज़राइल और लेबनान के बीच दशकों से चला आ रहा संघर्ष कोई नई बात नहीं है। हाल के दिनों में, लेबनान स्थित आतंकी संगठन हिज़बुल्लाह और अन्य समूहों ने इज़राइल पर रॉकेट हमले किए, जिससे इज़राइली सुरक्षा बल सतर्क हो गए। इज़राइल का दावा है कि लेबनान में सक्रिय आतंकी संगठनों को ईरान का समर्थन प्राप्त है, और वे लगातार इज़राइल की संप्रभुता को चुनौती दे रहे हैं।
इस बार, जब लेबनान से इज़राइल पर रॉकेट दागे गए, तो इज़राइल ने तुरंत जवाबी कार्रवाई करते हुए लेबनान के दक्षिणी हिस्से में हवाई हमले किए। इन हमलों में कई आतंकियों के मारे जाने की खबर है, और कई ठिकाने तबाह हो गए हैं।
इज़राइल की रणनीति
इज़राइल की नीति हमेशा से आतंकवाद के खिलाफ आक्रामक रही है।
- सटीक लक्ष्यीकरण: इज़राइल की वायुसेना उन्नत तकनीक का इस्तेमाल कर आतंकियों के अड्डों पर सटीक हमले करती है।
- रोकथाम की नीति: इज़राइल हमेशा से यह रणनीति अपनाता है कि दुश्मन के हमले से पहले ही उसे निष्क्रिय कर दिया जाए।
- राजनीतिक दबाव: इज़राइल ने संयुक्त राष्ट्र और पश्चिमी देशों से लेबनान में आतंकी गतिविधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की मांग की है।
लेबनान की प्रतिक्रिया
लेबनान की सरकार ने इज़राइली हमलों की निंदा की है और इसे अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन बताया है। हालांकि, लेबनान में सक्रिय आतंकी समूहों को लेकर सरकार के रुख में स्पष्टता की कमी है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
- अमेरिका और यूरोप: अमेरिका और पश्चिमी देशों ने इज़राइल के आत्मरक्षा के अधिकार को समर्थन दिया है, लेकिन क्षेत्र में शांति बनाए रखने की भी अपील की है।
- ईरान: ईरान, जो हिज़बुल्लाह का समर्थन करता है, उसने इस हमले की निंदा की है और चेतावनी दी है कि वह जवाबी कार्रवाई कर सकता है।
- संयुक्त राष्ट्र: यूएन ने दोनों पक्षों से संयम बरतने और संघर्ष विराम बनाए रखने की अपील की है।
संभावित प्रभाव
- अगर यह संघर्ष बढ़ता है, तो मध्य पूर्व में और अधिक हिंसा भड़क सकती है।
- इज़राइल और हिज़बुल्लाह के बीच तनाव एक बड़े युद्ध का रूप ले सकता है।
- अंतरराष्ट्रीय समुदाय पर कूटनीतिक दबाव बढ़ेगा कि वह इस मामले में हस्तक्षेप करे और शांति वार्ता शुरू कराए।